Breaking News in Hindi – मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में लगातार मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा दे रही है। उसी का नतीजा है की भारतीय सेना अब स्वदेश में निर्मित 6 स्वाति रडार ख़रीदने वाली है। भारतीय सेना इस रडार को ख़रीदने के लिए क़रीब 400 करोड़ का सौदा करेगी।

स्वाति रडार दुश्मन के हथियार की लोकेशन पता लगाने के काम आता है। इसका निर्माण DRDO यानी रक्षा अनुसंधान एवं विकास परिषद ने किया है। भारतीय सेना द्वारा ख़रीदे जाने वाले 6 स्वाति रडार की डील का फ़ैसला शायद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में मंगलवार को होने वाली बैठक में हो जाएगा।
इस रडार का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा किया जाता है। लेकिन इसका विकास और अनुसंधान DRDO द्वारा किया गया था। इससे पहले अर्मेनिया ने भी DRDO के इस रडार को ख़रीद चुका है, अगर यह रडार भारतीय सेना उपयोग करने लगेगी, तो कई देशों से इसको ख़रीदने का ऑर्डर आने की उम्मीद की जा रही है।
यह रडार 50 किमी के अंदर दुश्मन की हर गतिविधि का पता लगा सकता है। इससे दुश्मन के हथियार जैसे की मोर्टार, गोले, रॉकेट इत्यादि खोजने में सक्षम है। साथ ही यह रडार आस पास कई सभी दिशाओं में हो रहे फ़ायर और उस फ़ायर में उपयोग होने वाले हथियार की जानकारी भी दे सकता है।
भारतीय सेना इस रडार का सफल परीक्षण जम्मू-कश्मीर में कर चुकी है। भारत की सेना (Indian Army) के पास स्वाति रडार 2018 से ही है।
इससे पहले 1 मार्च, 2020 को भारत सरकार ने आर्मेनिया को 4 भारत निर्मित रडार “स्वाति रडार” को बेचने का सौदा किया था।
आर्मेनिया के सौदे की मुख्य बातें : Breaking News in Hindi
भारत सरकार और आर्मेनिया की सरकार के बीच स्वाति रडार की ख़रीद का सौदा हुआ है। आपको बता दें की अर्मेनिया की सेना ने रूस और पोलैंड के दो रडार का भी परीक्षण किया था, इसके बाद भारत के स्वाति राडार को खरीदने का फैसला किया। आर्मेनिया ने अपने बयान में कहा की दो अन्य रडार की तुलना में भारत का स्वाति रडार अधिक विश्वसनीय और बेहतर थी।
स्वाति राडार क्या है ? – What is Swati Radar
स्वाति वेपन लोकेटिंग रडार (डब्ल्यूएलआर) भारत द्वारा विकसित एक मोबाइल आर्टिलरी-लोकेटिंग चरणबद्ध रडार है। यह रडार उपकरण काउंटर बैटरी फायर के लिए उत्पत्ति के बिंदु को निर्धारित करने के लिए आने वाले तोप के गोलों और रॉकेट का पता लगाने और ट्रैक करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। भारत 1998 से एक अच्छा डब्ल्यूएलआर (वेपन लोकेटिंग रडार) रखना चाहता था, लेकिन पोकरण परमाणु परीक्षणों के बाद रक्षा उपकरणों की खरीद के लिए भारत पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे। वास्तव में 1980 में भारत में इस तरह की व्यवस्था होनी चाहिए थी।

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1989 की शुरुआत में, भारतीय सेना ने अमेरिकी राडार का मूल्यांकन किया। हालांकि, इन राडार को बेचने की अनुमति नहीं थी, और सरकार द्वारा खरीद प्रक्रिया को रोक दिया गया था।
कारगिल युद्ध के बाद इस तरह का राडार हासिल करने के प्रयास तेज हो गया, जहां भारतीय सेना को रडार की कमी से गंभीर रूप से नुकसान हुआ। युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों के शहीदों की संख्या का लगभग 80% दुश्मन के तोप के गोलों के कारण हुआ, जिससे सेना को ऐसे रडार की तत्काल ज़रूरत महसूस हुई। जबकि पाकिस्तानी सेनाएं अमेरिकन एएन/टीपीक्यू-36 फायरफाइंडर राडार से लैस थीं, भारत के पास ब्रिटिश सिम्बिलिन मोर्टार थे जो राडार का पता लगा रहे थे, जो उपयुक्त नहीं थे।
डीआरडीओ के इलेक्ट्रॉनिक्स और रडार विकास प्रतिष्ठान (LRDE) द्वारा विकसित SWATHI, एक साथ साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग हथियारों से दागे गए गोलों का पता लगा सकता है। यह प्रणाली अपनी सेना के द्वारा फ़ायर किए गए गोले की भी पहचान कर लेती है। इसके हथियार में 81 मिमी उच्च कैलिबर मोर्टार, 105 मिमी उच्च कैलिबर के गोले और 120 मिमी उच्च कैलिबर रॉकेट शामिल हैं।
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