Gissar Military Aerodrome (गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा) को Ayni Air Base या Secret Indian Military Base के रूप में भी जाना जाता है। यह एयरबेस ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे के पास एक गांव में स्थित है।
Gissar Military Aerodrome चर्चा में क्यों है?
पूरे अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से उत्पन्न हुए हालात में वहाँ पर फंसे भारतीयों को निकालने के लिए भारतीय वायुसेना काम कर रही है। हाल ही में भारतीय वायुसेना का C-17 विमान जो अफगानिस्तान से भारतीयों को लेकर चला था वो उसे अपना रूट बदलना पड़ा इसके बाद वो ताजिकिस्तान के गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा पर उतरा था। अभी तक इस बेस की चर्चा नही होती थी, लेकिन भारतीय वायुसेना का C-17 विमान के वहाँ उतरने के बाद पूरी दुनिया में इसकी चर्चा होने लगी। ताजिकिस्तान में स्थित Gissar Military Aerodrome (गिस्सार सैन्य हवाई अड्डा) विदेश में भारत का पहला और इकलौता सैन्य बेस है।
ताजिकिस्तान में स्थित भारत का पहला विदेशी सैन्य बेस गिस्सार मिलिट्री एयरोड्रोम (GMA) का उद्देश्य भारत के सैन्य अभियानों और प्रशिक्षण को रणनीतिक रूप देना है। पिछले रविवार से भारत के सैकड़ों नागरिकों और अफगानों को काबुल से निकालने के भारत के प्रयास में यह बेस काम आया है।
Gissar Military Aerodrome
जीएमए (Gissar Military Aerodrome) जिसे Ayni airbase के नाम से जाना जाता है, जिसका नाम अयनी गांव के नाम पर रखा गया है, ताजिकिस्तान राजधानी दुशांबे के ठीक पश्चिम में एक गाँव में है। रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि लगभग दो दशकों से ताजिकिस्तान के साथ भारत इस बेस को कंट्रोल कर रहे हैं।

सूत्रों ने पता चला कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ ने विदेश मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित इस बेस को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हालांकि अभी तक दुनिया की नज़रों से दूर रहा यह बेस अफगानिस्तान से चल रही निकासी प्रक्रिया के कारण सुर्खियों में आ गया है। अफगानिस्तान के मिशन के दौरान एयर इंडिया के विमान के अलावा भारतीय वायु सेना के C-17 और C-130 J परिवहन विमानों ने ताजिकिस्तान के इस एयरबेस का इस्तेमाल किया है।
एक सी-130 जे विमान ने काबुल से 87 भारतीयों को एयरलिफ्ट किया और ताजिकिस्तान में उतरा। इस बेस तक लाए गए लोगों को इसके बाद एयर इंडिया की फ़्लाइट द्वारा भारत पहुँचाया गया।
इसी तरह, जब भारत ने 17 अगस्त को फंसे भारतीयों के साथ काबुल से अपने दूतावास के कर्मचारियों को निकाला तो C-17 जीएमए में अमेरिकियों से उड़ान भरने और उन्हें निकालने के लिए मंजूरी का इंतजार कर रहा था। सूत्रों ने कहा कि ऐसा इसलिए था क्योंकि विमान काबुल हवाई अड्डे पर नहीं रह सकता था।
GMA (Gissar Military Aerodrome) प्रोजेक्ट 2002 में शुरू हुआ
GMA को लोग अक्सर दूसरे Farkhor Base के साथ भ्रमित होते हैं। दक्षिणी ताजिकिस्तान में स्थित फरखोर उत्तरी अफगानिस्तान की सीमा के पास एक ऐसा शहर है जहाँ भारत ने 1990 के दशक में एक अस्पताल चलाया था।
यह वही अस्पताल में है जहां शक्तिशाली अफगान गुरिल्ला नेता उत्तरी गठबंधन के दिवंगत अहमद शाह मसूद – जिन्होंने सोवियत और बाद में तालिबान से लड़ाई लड़ी थी को 2001 में एक आत्मघाती हमलावर द्वारा खुद को उड़ाए जाने के बाद इलाज के लिए लाया गया था। हालांकि अस्पताल के सैन्य डॉक्टर तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें नहीं बचा सके।
सूत्रों ने बताया कि 9/11 हमले के बाद अस्पताल ने काम करना बंद कर दिया था। हालाँकि भारत ताजिकिस्तान के सैन्य कर्मियों के लिए दक्षिणी ताजिकिस्तान के कुर्गन तेप्पा में 50 बिस्तरों वाला एक अस्पताल अभी भी चलाता है।
2001-2002 के आसपास विदेश मंत्रालय और सुरक्षा प्रतिष्ठान में Ayni के GMA को विकसित करना का विचार किया गया था। इस परियोजना को पूर्व रक्षा मंत्री स्वर्गीय जॉर्ज फर्नांडीस द्वारा समर्थन दिया गया था।
IAF ने इस एयरबेस पर काम शुरू करने के लिए तत्कालीन ग्रुप कैप्टन नसीम अख्तर (सेवानिवृत्त) को नियुक्त किया। अख्तर, जो एयर कमोडोर के रूप में सेवानिवृत्त हुए के बाद एक अन्य अधिकारी आया, जिसके कार्यकाल के दौरान भारत सरकार द्वारा नियुक्त निजी ठेकेदार अपने दायित्वों से पीछे हट गया, जिसके बाद एक कानूनी मुकदमा चला।
इसके बाद भारत सरकार ने सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की टीम को भी शामिल किया, जिसका नेतृत्व एक ब्रिगेडियर कर रहे थे। उस समय परियोजना पर लगभग 200 भारतीय काम कर रहे थे और Gissar Military Aerodrome की हवाई पट्टी को 3200 मीटर तक बढ़ा दिया गया था – जो कि अधिकांश फिक्स्ड-विंग विमानों के उतरने और टेक-ऑफ करने के लिए पर्याप्त था।
इसके अलावा, भारतीय टीम ने हैंगर, ओवरहालिंग और विमान में ईंधन भरने की क्षमता भी विकसित की। ऐसा अनुमान है कि भारत ने GMA को विकसित करने में लगभग 100 मिलियन अमरीकी डालर खर्च किए हैं। एयर चीफ मार्शल धनोआ जब ग्रुप कैप्टन थे तो उन्हें 2005 के अंत में जीएमए का पहला बेस कमांडर (ऑपरेशनल) नियुक्त किया गया था।
हालांकि इस बेस में भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ाया और अस्थायी आधार पर लड़ाकू विमान ‘Su 30MKI’ की पहली अंतरराष्ट्रीय तैनाती GMA में की।
GMA के पीछे रणनीतिक विचार
सूत्रों का कहना है कि GMA (Gissar Military Aerodrome) भारतीय सेना को काफी रणनीतिक बढ़त देता है। ताजिकिस्तान चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करता है। यह अफगानिस्तान के वखान कॉरिडोर जो पीओके और चीन के साथ सीमा साझा करता है को जोड़ता है।
यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से लगभग 20 किमी दूर है, इसकी वजह से ताजिकिस्तान से संचालित करने की क्षमता होने से सैन्य योजनाकारों को बहुत सारे विकल्प मिलते हैं।
सूत्रों ने कहा कि युद्ध के समय भारतीय वायु सेना के फ़ाइटर जेट ताजिकिस्तान से पेशावर को निशाना बना सकते हैं, जो पाकिस्तान के संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डालेगा। इसका मतलब है कि पाकिस्तान को अपनी सेना और संसाधनों को अपनी पूर्वी सीमाओं से पश्चिमी की ओर ले जाना होगा जो भारत के साथ उसके सीधे मोर्चे को कमजोर कर देगा।
ताजिकिस्तान में पैर जमाने का एक और बड़ा फायदा यह है कि यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान में अलग-अलग रास्ते खोल देता है।
हालांकि, रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के कुछ लोगों का तर्क है कि भारत कभी भी जीएमए या किए गए निवेश का पूरी तरह से उपयोग करने में सक्षम नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि अन्य देशों के साथ इस तरह के अन्य संयुक्त सहयोगात्मक प्रयास भी पिछले कुछ वर्षों में पूरी तरह से आगे नहीं बढ़े हैं।
Defence News Web Title : Gissar Military Aerodrome – Secret Indian Military Base in Tajikistan (Defence News in Hindi).
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