वर्तमान में पूरे देश में इतिहास को नए नजरिए से प्रस्तुत करने की पहल चल रही हो, तब भी विन्ध्य के इतिहास को संरक्षित रखने वाले तुलसी संग्रहालय के लिए शासन-प्रशासन की ध्यान ना देना, विन्ध्य के उपेक्षित होने का सबसे बड़ा उदाहरण है।
देश जब पुरातात्विक महत्व के प्रति ज़्यादा सजग नहीं था, तब सतना में निजी तौर पर संस्कृति के संरक्षण का प्रयास रामवन में किया गया है। मानवी सभ्यता के पहले और बाद की निशानियों को सुरक्षित रखने की कोशिश की गई थी।

फिलहाल इसके संरक्षण का जिम्मा राज्य सरकार के पास है। गौरतलब है कि वर्षों पहले निजी तौर पर लोगों के आपसी सहयोग से समाजसेवी चिंतक बाबू शारदा प्रसाद खत्री ने उस कल्पना को आकार देने की कोशिश की थी, जिसे कोलकाता के विक्टारिया म्युजियम और सेन्ट्रल लाइब्रेरी में देखा जा सकता है।
मानवीय सभ्यता के प्रारम्भ से इतिहास के पन्नों में स्थान रखने वाले विन्ध्य में त्रेता, द्वापर के साथ-साथ नाग, बौद्ध, जैन, मौर्य, शुंग, सात वाहन और गुप्त कात के दर्जनों ऐसे चिन्ह मिले हैं, जिन्हे इतिहास के पन्नों से कभी हटाया नहीं जा सकता। चंदेलों, जैन और बौद्ध के प्रभाव वाली इस पवित्र भूमि का शासक कोई भी रहा हो, उनकी निशानियाँ अभी भी बरकरार हैं।
स्वर्गीय बाबू शारदा प्रसाद ने विन्ध्य की इसी अनोखी पहचान को कायम रखने के उद्देश्य से क्षेत्र में बिखरी पुरा-सम्प्रदा को संरक्षित करने के लिए जो पहल शुरू की उसे राज्य सरकार ने भी सराहा और स्वंय ही संरक्षित करने का प्रण लिया।
ओरछा से लेकर बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के करीब तक की पुरा सम्पदा की पहचान कर उसे संग्रहालय की परिधि में लाने का उनका प्रयास जीवन पर्यन्त जारी रहा।
उनकी कल्पना के अनुसार संग्रहालय का स्वरूप क्या होगा? उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके लिए उन्होने 31 एकड़ का भूखण्ड आरक्षित कर रखा था। तुलसी संग्रहालय के साथ स्थापित शोध ग्रन्थालय में कभी 33 हजार से अधिक पुस्तकें हुआ करती थी।
इनमें कुछ पुस्तके इतनी मूल्यवान थी कि उसकी कीमत का अन्दाजा ही नहीं लगाया जा सकता है अग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत और उर्दू भाषा की पुस्तकों का यह पुस्तकालय भारतीय दर्शन और संस्कृति के शोध का उत्कृष्ट संस्थान बन सकता था, लेकिन शासकीय उपेक्षा के चलते फिलहाल बन्द होने की कगार पर पहुँच गया है।
पहले पुस्तकालय से जुडे लोगों ने बताया कि यहां पर बाबू शारदा प्रसाद ने स्वंय पूरे विन्ध्य के पढ़े, लिखे, प्रतिष्ठित व्यक्तियों से सम्पर्क कर पुस्तकों एवं पुरातत्विक महत्व की मूर्तियां व अन्य सामग्री का संग्रहण किया था।
रीवा राज्य के एक्साइज कमिश्नर पुणेन्दुशेखर तिवारी ने अपने संग्रह से 4 हजार पुस्तकों का दान पुस्तकालय के लिए किया था, जिनमें धर्म और अध्यात्म की ऐसी पुस्तकें भी थी जो अब शायद ही कहीं उपलब्ध होगी।
किसी का ध्यान नहीं
इस संग्रहालय के प्रभारी और उपसंचालक पुरातत्व प्रेमचन्द्र महोबिया ने बताया कि राज्य सरकार की नीति के तहत नई भर्ती हो ही नहीं रही है। जो पद सेवानिवृत्ति के बाद रिक्त होते हैं, वे खाली रह जा रहे हैं। इन परिस्थितियों में संग्रहालय की व्यवस्था पर भी असर पडता है।
बजट के सन्दर्भ में उनका कहना था कि विकास कार्य के लिए अलग से प्रस्ताव तैयार किए जाते है। रख-रखाव के लिए बजट का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होने भी स्वीकार किया कि अब रामवन की व्यवस्था पहले जैसी नहीं रही।
Web Title : The history of Vindhya is on the verge of ending, MP state government ignored the Tulsi Museum of Ramvan – Satna News.
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