Satna News (सतना समाचार) रिपोर्ट
Birsinghpur News (बिरसिंहपुर समाचार), Satna : विश्व हिंदू परिषद प्रखंड बिरसिंहपुर के पदाधिकारियों द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाने के लिए बिरसिंहपुर गैवीनाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ को विधिवत अभिषेक कराया गया।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार महादेव की त्रयोदशी पर की गई पूजा-अर्चना अत्यंत फलकारी होती है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष को सोमवार के दिन त्रयोदशी का विशेष महत्व होता है।
मंदिर में पुरोहित लक्ष्मीकांत पाठक द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना करवाकर दुग्धाभिषेक कराया गया। जिसमें घी, दूध, दही, शहद, गंगाजल, गुलाबजल, शर्करा, भस्मी, भांग, चंदन, केसर, इत्र, फल, फूल, मीठा, दूर्वा, शमी पत्र, मंदार पुष्प, धतूरा, बिल्वपत्र, तुलसी मंजरी आदि सामग्री से अभिषेक कराया गया।
साथ ही देश को भीषण महामारी से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की गई। इस दौरान प्रखंड अध्यक्ष मुकेश गौतम, प्रखंडसह मंत्री निरंजन पांडे, राजा भइया तिवारी, वीरेंद्र पांडे, जय श्री पांडे, कुमारी योगिता, शिवम माली, संदीप माली, किशन, सोमनाथ माली, शिब्बू माली ने अभिषेक कराया।
क्यों किया जाता है भोलेनाथ को दुग्धाभिषेक
शिवलिंग का दूध से दुग्धाभिषेक या रुद्राभिषेक करने से सभी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। सोमवार के दिन दूध का दान करने से चन्द्रमा मजबूत होता है। जल में थोड़ा सा दूध डालकर स्नान करने से मानसिक तनाव दूर होता है और चिंताएं कम होती हैं।
सावन के महीने और सोमवार के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया जाता है। विष्णु पुराण और भागवत पुराण में समुद्र मंथन की कथा में शिवलिंग के दुग्धाभिषेक करने के बारे में बताया गया है। माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान संसार को बचाने के लिए जब भगवान शिव ने विष पी लिया था तब उनका पूरा कंठ नीला हो गया था।
इस विष का प्रभाव भगवान शिव और उनकी जटा में बैठी देवी गंगा पर भी पड़ने लगा था। ऐसे में समस्त देवी-देवताओं ने शिवजी से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया। शिव ने जैसे ही दूध ग्रहण किया, उनके शरीर में विष का असर कम होने लगा, हालांकि उनका कंठ हमेशा के लिए नीला हो गया और उन्हें एक नया नाम नीलकंठ मिला। तभी से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने यानी दुग्धाभिषेक की परंपरा शुरू हुई।
Web Title : Satna News ॰ Worship was done at the Gaivinath Temple to get rid of the corona epidemic – Birsinghpur News.